१८.७० – अध्येष्यते च य इमं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक ६९

श्लोक

अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: |
ज्ञानयज्ञेन तेनाहमिष्ट: स्यामिति मे मति: ||

पद पदार्थ

य: – जो
आवयो: – हम दोनों के बीच हुए
इमं धर्म्यं संवादं – मोक्ष प्राप्ति साधनों के विषय में इस सम्भाषणरूपी शास्त्र को
अध्येष्यते – पढ़ता है
तेन – उसके द्वारा
ज्ञान यज्ञेन अहम् इष्ट: स्याम – इस शास्त्र में बताये गए ज्ञान यज्ञ से मेरी आराधना की गई
इति – यह
मे मति: – मेरा अभिमत है

सरल अनुवाद

यह मेरा अभिमत है कि जो मनुष्य हम दोनों के बीच हुए  मोक्ष प्राप्ति साधनों के विषय में इस सम्भाषणरूपी शास्त्र को  पढ़ता है, उसके द्वारा इस शास्त्र में बताये गए  ज्ञान यज्ञ से मेरी आराधना की गई ।  

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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