श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयो: उभयो: अपि |
तान् समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान् बन्धून् अवस्थितान् ৷৷
पद पदार्थ
श्वशुरान् – ससुर
सुहृद: – शुभचिन्तक
उभयो: अपि सेनयो: – दोनों सेनाओं में
स कौन्तेय – कुन्तीपुत्र अर्जुन
अवस्थितान् – जो भी युद्ध के लिए इकट्ठे हुए हैं
तान् बन्धून् – उन रिश्तेदारों को
समीक्ष्य – अच्छी तरह से देखा
सरल अनुवाद
कुन्तीपुत्र अर्जुन, अपने ससुर और शुभचिंतकों को दोनों सेनाओं में देखा | उसने उन सारे रिश्तेदारों को देखा जो भली भांति युद्ध करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी