१.२७ – श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयो: उभयो: अपि |
तान्‌ समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धून्‌ अवस्थितान्‌ ৷৷

पद पदार्थ

श्वशुरान्‌ – ससुर
सुहृद: – शुभचिन्तक
उभयो: अपि सेनयो: – दोनों सेनाओं में
स कौन्तेय – कुन्तीपुत्र अर्जुन
अवस्थितान्‌ – जो भी युद्ध के लिए इकट्ठे हुए हैं
तान्‌ बन्धून्‌ – उन रिश्तेदारों को
समीक्ष्य – अच्छी तरह से देखा

सरल अनुवाद

कुन्तीपुत्र अर्जुन, अपने ससुर और शुभचिंतकों को दोनों सेनाओं में देखा | उसने उन सारे रिश्तेदारों को देखा जो भली भांति युद्ध करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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आधार – http://githa.koyil.org/index.php/1-27/