१.२८ – कृपया परयाविष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

कृपया परयाविष्टो विषीदत्रिदमब्रवीत्‌ ।
अर्जुन उवाच
दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ৷৷

पद पदार्थ

परया कृपया आविष्ट: – दया से अभिभूत होकर
विषिदन – दुःखित होकर
इदं – इस प्रकार से
अब्रवीत्‌ – कहा
कृष्ण – हे कृष्ण !
युयुत्सुं – युद्ध करने की इच्छा से
समुपस्थितम्‌ – मेरे सामने खड़े हुए
इमं स्वजनं – मेरे ही रिश्तेदार
दृष्ट्वा – देखकर

सरल अनुवाद

दया से अभिभूत होकर तथा दुःखित होकर अर्जुन ने कृष्ण से कहा ,” हे कृष्ण ! मेरे ही रिश्तेदार युद्ध करने की इच्छा से मेरे सामने खड़े हुए देखकर….”

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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