१.३७ – तस्मान्‌ नार्हा वयं हन्तुं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

तस्मान्‌ नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्‌ ।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव ৷৷

पद पदार्थ

तस्मात् – इसलिए
वयं – हम
स-बान्धवान्‌ – सगे सम्बन्धी
धार्तराष्ट्रान् – दुर्योधन और सारे कौरव
हन्तुं अर्हा: न – मारने को अशक्त हैं
माधव – हे! श्री के पति !
स्वजनं – हमारे ही भाइयों को
हत्वा – मारने से
कथं सुखिनः स्याम – कैसे सुख पा सकेंगे ?

सरल अनुवाद

इसलिए हम दुर्योधन और सारे कौरवों को मारने को अशक्त हैं | हे श्री के पति ! हमारे ही भाइयों को मारने से क्या सुख पा सकेंगे ?

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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