१.४० – कुल क्षये प्रणश्यन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १

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श्लोक

कुल क्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः ।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नम्‌ अधर्मोऽभिभवत्युत ৷৷

पद पदार्थ

कुल क्षये – जब कुल का विनाश होता है
सनातनाः – प्राचीन
कुलधर्माः – कुल का नियम / आचरण
प्रणश्यन्ति – विनष्ट हो जाता है
धर्मे नष्टे – जब नियमों और आचरणों का विनाश होता है
कृत्स्नं कुलं – सारे कुल
अधर्म: युत – दुराचार भी
अभिभवति – ग्रहण करके विजयी हो जाता है

सरल अनुवाद

जब कुल का विनाश होता है तब प्राचीन नियम और आचारों का विनाश हो जाता है | जब नियमों और आचरणों का विनाश होता है तो दुराचार इस सारे कुल को ग्रहण करके विजयी हो जाता है |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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