श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
वक्तुम् अर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकान् इमांस् त्वं व्याप्य तिष्ठसि ॥
पद पदार्थ
याभि: विभूतिभि: – उन महिमाएँ जिनसे
इमां लोकान् – इन समस्त लोकों
त्वं – आप
व्याप्य तिष्ठसि – व्याप्त होकर चमक रहे हैं
दिव्या: आत्मविभूतयः – वे अद्भुत महिमाएँ जो आपके लिए अद्वितीय हैं
(ता – उन्हें )
अशेषेण वक्तुम् अर्हसि हि – किसी को भी बिना लुप्त, आप ही प्रकट करें
सरल अनुवाद
अद्भुत महिमाएँ जो आपके लिए अद्वितीय हैं, उनमें से किसी को भी बिना लुप्त, आप ही उन्हें प्रकट करें , उन महिमाएँ जिनसे आप इन समस्त लोकों में व्याप्त होकर चमक रहे हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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