१०.२१ – आदित्यानाम् अहं विष्णु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ॥

पद पदार्थ

आदित्यानां – १२ आदित्यों (अदिति के पुत्रों) में से
विष्णु: – (श्रेष्ट हूँ) विष्णु के नाम से जाना जाता हूँ
अहं – मैं
र्ज्योतिषां – प्रकाशमान वस्तुओं में
अंशुमान् रवि: – किरणों वाला सूर्य हूँ
(अहं – मैं);
मरुतां – मरुतों (हवाओं) में
मरीचि: – मरीचि हूँ (जो सर्वोत्तम है)
अस्मि – मैं बन गया
नक्षत्राणां – सितारों में
शशी – चाँद हूँ
अहं – मैं

सरल अनुवाद

१२ आदित्यों (अदिति के पुत्रों) में से ,मैं (श्रेष्ट हूँ) विष्णु के नाम से जाना जाता हूँ ; मैं प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य हूँ; मरुतों (हवाओं) में, मैं मरीचि हूँ (जो सर्वोत्तम है) ; सितारों में, मैं चाँद हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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