१०.३५ – बृहत्साम तथा साम्नां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।

पद पदार्थ

तथा – उसी प्रकार
साम्नां – साम वेद मंत्रों में
बृहत्साम – मैं बृहत् साम हूँ
छन्दसां – छन्दसों में
गायत्री अहम् – मैं गायत्री हूँ
मासानां – महीनों में
मार्गशीर्ष अहम् – मैं मार्गशीर्ष (धनुर्मास) हूँ
ऋतूनां – ऋतुओं में
कुसुमाकरः – मैं वसंत ऋतु हूँ

सरल अनुवाद

उसी प्रकार, साम वेद मंत्रों में, मैं बृहत् साम हूँ ; छन्दसों में मैं गायत्री हूँ ; महीनों में मैं मार्गशीर्ष (धनुर्मास) हूँ ; ऋतुओं में मैं वसंत ऋतु हूँ |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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