१०.४ – बुद्धि: ज्ञानम् असम्मोहः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव
च ॥

पद पदार्थ

बुद्धि: – मन की विश्लेषणात्मक क्षमता
ज्ञानं – दृढ़ ज्ञान ( चित और अचित के बीच में अंतर )
असम्मोहः – संभ्रमता (एक वस्तु को दूसरे वस्तु समझकर भ्रमित होना ) का निवारण
क्षमा – क्षमा करना (भले ही क्रोधित होने का कारण हो)
सत्यं – सच बोलना
दमः – बाहरी इंद्रियों को नियंत्रित करना (नीच आनंद की माँग से)
शमः – मन को नियंत्रित करना (नीच आनंद की माँग से)
सुखं – आत्मा के लिए अनुकूल अनुभव
दुःखं – आत्मा के लिए प्रतिकूल अनुभव
भव: – मन की आनंदमय स्थिति (ऐसे अनुकूल अनुभव से )
अभाव: – मन की दुःखमय स्थिति (ऐसे प्रतिकूल अनुभव से )
भयं – [भय] दुःख (जो आने वाले दुःख का पूर्वाभास होने के कारण उत्पन्न होता है)
अभयं – [निर्भयता] ऐसे दुःख का निवारण
एव च – ऐसे विषय

सरल अनुवाद

मन की विश्लेषणात्मक क्षमता, दृढ़ ज्ञान ( चित और अचित के बीच में अंतर का ),संभ्रमता (एक वस्तु को दूसरे वस्तु समझकर भ्रमित होना ) का निवारण, क्षमा करना (भले ही क्रोधित होने का कारण हो), सच बोलना, बाहरी इंद्रियों को नियंत्रित करना (नीच आनंद की माँग से), मन को नियंत्रित करना (नीच आनंद की माँग से), आत्मा के लिए अनुकूल अनुभव, आत्मा के लिए प्रतिकूल अनुभव, मन की आनंदमय स्थिति (ऐसे अनुकूल अनुभव से ), मन की दुःखमय स्थिति (ऐसे प्रतिकूल अनुभव से ), [भय] दुःख (जो आने वाले दुःख का पूर्वाभास होने के कारण उत्पन्न होता है), [निर्भयता] ऐसे दुःख का निवारण, जैसे विषय ….

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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