१०.६ – महर्षयः सप्त पूर्वे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १०

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श्लोक

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ॥

पद पदार्थ

पूर्वे – प्रथम मन्वंतर(मनु का शासनकाल) से
मानसा – (ब्रह्मा के) मन द्वारा बनाए गए थे
सप्त महर्षयः – सात महान ऋषियों (भृगु से आरंभ)
तथा – उसी तरह
चत्वार: मनव: – चार मनु
मद्भावा: – मेरी इच्छा का पालन करने में लगे हुए हैं
येषां लोक – उनके वंशज
इमाः प्रजाः जाता – सभी रचनाएँ जो अभी उपस्थित हैं, से उत्पन्न हुए हैं

सरल अनुवाद

सभी रचनाएँ जो अभी उपस्थित हैं, वे सात महान ऋषियों और चार मनु से उत्पन्न हुए हैं और उनके वंशज हैं, जो (ब्रह्मा के) मन द्वारा बनाए गए थे, प्रथम मन्वंतर(जो ब्रह्मा के हर एक दिन की शुरुआत में होता है) से ही मेरी इच्छा का पालन करने में लगे हुए हैं |

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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