श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
मच्चित्ता: मद्गतप्राणा: बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥
पद पदार्थ
मच्चित्ता: – उनका मन मुझमें स्थिर रखकर
मद्गतप्राणा: – उनका जीवन मुझमें केंद्रित
परस्परं बोधयन्तः – एक-दूसरे को सूचित करते (मेरे उन गुणों के बारे में जो उन्हें पसंद हैं ) हुए
मां नित्यं कथयन्त: च – हमेशा मेरे और मेरी दिव्य गतिविधियों के बारे में चर्चा करते हुए
तुष्यन्ति च – (बिना किसी गुप्त उद्देश्य के बोलने के कारण वक्ता) प्रसन्न हो जाते हैं
रमन्ति च – (मधुर वचन सुनने से श्रोता) प्रसन्न हो जाते हैं
सरल अनुवाद
[मेरे भक्त ] उनका मन मुझमें स्थिर रखकर, उनका जीवन मुझमें केंद्रित, एक-दूसरे को सूचित करते (मेरे उन गुणों के बारे में जो उन्हें पसंद हैं ) हुए , हमेशा मेरे और मेरी दिव्य गतिविधियों के बारे में चर्चा करते हुए , वक्ता और श्रोता दोनों प्रसन्न हो जाते हैं |
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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