श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
दिव्य माल्याम्बरधरं दिव्य गंधानुलेपनम् |
सर्वाश्चर्यमयं देवम् अनन्तं विश्वतोमुखम् ||
पद पदार्थ
दिव्य माल्य अंबरधरम् – दिव्य मालाओं और वस्त्रों से सुशोभित गया
दिव्य गंध अनुलेपनम् – दिव्य चंदन लेप आदि से अभिषेक किये
सर्व आश्चर्यमयम् – सभी अद्भुत सत्ताओं/पहलुओं का निवास स्थान होना
देवम् – उज्ज्वल
अनन्तम् – स्थान और समय से बंधन रहित
विश्वतो मुखम् – सभी दिशाओं में मुखों वाले
सरल अनुवाद
…..दिव्य मालाओं और वस्त्रों से सुशोभित , दिव्य चंदन लेप आदि से अभिषेक किये , सभी अद्भुत सत्ताओं /पहलुओं का निवास स्थान होकर ,उज्ज्वल और स्थान और समय से रहित, सभी दिशाओं में मुखों के साथ – ऐसे दिव्य रूप को भगवान ने प्रकट किया।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/11.11/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org