११.१५ – पश्यामि देवांस्तव देव देहे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

अर्जुन उवाच

पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा  भूतविशेषसङ्घान्  |
ब्रह्माणमीशं  कमलासनस्थं ऋषींश्च  सर्वान् उरगांश्च  दीप्तान् (दिव्यान्)  ||

पद पदार्थ

अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा
देव – हे प्रभु!
तव देवे – तुम्हारे स्वरूप में
सर्वान् देवान् पश्यामि – मैं सभी देवताओं को देख रहा हूँ
तथा – उसी प्रकार
(सर्वान्) भूत विशेष सङ्घान (पश्यामि) – मैं सभी प्राणियों का संग्रह देख रहा हूँ
(तथा – उसी प्रकार)
ब्रह्माणम् – ब्रह्मा
कमलासनस्थम् ईशं – शिव (रुद्र) जो कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा के प्रति आज्ञाकारी हैं
सर्वान ऋषीन् च – सभी ऋषियों
दीप्तान् (दिव्यान्) – दीप्तिमान
उरगान् च – सर्पों को
पश्यामि – देख रहा हूँ

सरल अनुवाद

अर्जुन ने कहा-हे प्रभु ! मैं तुम्हारे  स्वरूप में सभी देवताओं को देख रहा हूँ; उसी प्रकार मैं समस्त प्राणियों का संग्रह देख रहा हूँ; उसी प्रकार, मैं, ब्रह्मा और कमल के फूल पर बैठे ब्रह्मा के प्रति आज्ञाकारी शिव (रुद्र); सभी ऋषियों और दीप्तिमान सर्पों को को देख रहा हूँ ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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