श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम् |
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ||
पद पदार्थ
अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं – अनगिनत हाथों,पेटों ,मुखों,आंखों
अनन्त रूपम् – अनगिनत आकृति से युक्त
त्वां – तुम
सर्वथा – सभी ओर से
पश्यामि – मैं देख रहा हूँ।
विश्वेश्वर – हे !सबके नियन्ता!
विश्वरूप – हे ! जिसमे सब कुछ शरीर के समान है
(तुम्हारे असीमित रूप में)
तव-तुम्हारे
न अन्तं पश्यामि – मैं अंत नहीं देख रहा हूँ
न मध्यं (पश्यामि) – मैं मध्य नहीं देख रहा हूँ
न पुन: आदिम् (पश्यामि) – मैं आरंभ नहीं देख रहा हूँ
सरल अनुवाद
मैं तुम्हें सभी ओर अनगिनत हाथों, पेटों, मुखों ,आंखों और आकृतियों से युक्त देख रहा हूँ। हे सबके नियंता! हे जिसमे सब कुछ शरीर के समान है, मैं तुम्हारे अंत, मध्य या आरंभ नहीं देख रहा हूँ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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