११.२५ – दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

दंष्ट्राकरालानि च ते मुखानि दृष्ट्वैव कालानलसन्निभानि।
दिशो न जाने न लभे च शर्म प्रसीद देवेश जगन्निवास।।

पद पदार्थ

देवेश – हे देवदेव!
जगन्निवास – हे समस्त लोकों के निवास स्थान!
दंष्ट्रा करालानि – दांतों के कारण भयावह दिखने वाले
कालानल सन्निभानि च – प्रलय काल की आग के समान
ते – तुम्हारा
मुखानि – चेहरे /मुखों
दृष्ट्वा एव – देखने पर ही
दिशा: – दिशाएँ
न जाने – मुझे ज्ञान नहीं
न च शर्म लभे – आनंद की प्राप्ति नहीं होता
प्रसीद – दयालु बनो [मेरे प्रति]

सरल अनुवाद

हे देवदेव! हे समस्त लोकों के स्वामी! तुम्हारे  दाँतों के कारण भयावह दिखने वाले और प्रलय काल की आग के समान दिखने वाले तुम्हारे चेहरे /मुखों को देखने पर ही , मुझे दिशाओं का ज्ञान नहीं होता और मुझे आनंद की प्राप्ति नहीं  होता। [मेरे प्रति] दयालु बनो।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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