११.२७ – वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः।।

पद पदार्थ

दंष्ट्राकरालानि – घुमावदार दांत होना
भयानकानि – बहुत भयानक
ते वक्त्राणि – तुम्हारे मुखों में
त्वरमाणा एव विशन्ति – प्रवेश करना (उनके विनाश की ओर)
केचित् – उनमें से कुछ
चूर्णितै: उत्तमाङ्गैः – उनके सिर कटे हुए
दशनान्तरेषु विलग्ना – दांतों के बीच के अंतराल में लटके हुए
संदृश्यन्ते – दिखाई देते हैं

सरल अनुवाद

[वे सभी (पिछले श्लोक में बताये गए)] तुम्हारे मुँह में प्रवेश कर रहे हैं जो घुमावदार दांतों के कारण भयानक हैं। उनमें से कुछ के सिर कटे हुए दांतों के बीच के अंतराल में लटके हुए दिखाई देते हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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