११. ३ – एवम् एतद्यथाऽऽत्थ 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

एवमेतद्यथाऽऽत्थ त्वम् आत्मानं परमेश्वर |
द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं  पुरुषोत्तम ||

पद पदार्थ

परमेश्वर – हे सर्वेश्वर! (सभी के भगवान)
पुरुषोत्तम – हे पुरुषोत्तम! (सभी में सबसे महान)
यथा त्वं आत्मानं आत्थ – जिस प्रकार तुमने अपने बारे में समझाया
एवम् एतत् -जो जैसा है ( मुझे वैसे ही समझ में आया)
ऐश्वरं – सभी का नियंत्रक होने जैसी महिमा होना
ते रूपं – तुम्हारे  उस रूप
द्रष्टुमिच्छामि (अहम्) – मैं देखना चाहता हूँ

सरल अनुवाद

हे सर्वेश्वर! हे पुरुषोत्तम! तुमने  अपने बारे में जिस प्रकार समझाया, वह मुझे वैसे ही समझ में आया। मैं तुम्हारे  उस रूप को देखना चाहता हूँ  जिसमें सभी के नियंत्रक होने जैसी महिमा है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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