श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान् समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो।।
पद पदार्थ
विष्णो – हे विष्णु!
समग्रान् लोकान् – सभी योद्धाओं
ज्वलद्भिः वदनै: – उग्र मुखों
ग्रसमानः – भस्म
समन्तात् लेलिह्यसे – चारों ओर से बार-बार चाट रहे हो
त्व – तुम्हारे
उग्र भास – प्रचण्ड किरणों
तेजोभि: – का तेज
समग्रं जगत् – सम्पूर्ण जगत
आपूर्य – भरकर
प्रतपन्ति – जला रहा है
सरल अनुवाद
हे विष्णु! तुम इन सभी योद्धाओं को तुम्हारे उग्र मुखों से भस्म कर रहे हो और उन्हें चारों ओर से बार-बार चाट रहे हो ; तुम्हारी प्रचण्ड किरणों का तेज सम्पूर्ण जगत को भरकर जला रहा है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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