११.४६ – किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तम् इच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।
तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।।

पद पदार्थ

सहस्रबाहो – हे अनंत भुजाओं वाले!
विश्वमूर्ते – हे संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने शरीर के रूप में धारण करने वाले!
तथा एव – पहले की तरह
किरीटिनं – केवल एक मुकुट पहने हुए
गदिनं – गदा लिए हुए
चक्रहस्तं – अपने हाथ में चक्र पकड़े हुए
त्वां – तुम्हे
अहं – मैं
द्रष्टुं इच्छामि – देखना चाहता हूँ
तेन एव – पहले की तरह
चतुर्भुजेन रूपेण – चार दिव्य हाथों वाला दिव्य रूप
भव – कृपया धारण करें

सरल अनुवाद

हे अनंत भुजाओं वाले! हे संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने शरीर के रूप में धारण करने वाले! मैं तुम्हे पहले की तरह ही देखना चाहता हूँ, केवल एक मुकुट पहने हुए, गदा लिए हुए और अपने हाथ में चक्र पकड़े हुए; कृपया पहले की तरह चार दिव्य हाथों वाला दिव्य रूप धारण करें।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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