११.५ – पश्य मे पार्थ रूपाणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

श्री भगवान उवाच

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रश : | 
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णा कृतीनि च ||

पद पदार्थ

श्री भगवान उवाच – भगवान कृष्ण ने कहा
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
मे – मेरा
रूपाणी – रूपों (जो हर जगह उपस्थित हैं)
पश्य – देखो;
अथ – और
शतश: सहस्रश: च – सैकड़ों और हजारों
नाना विधानी -और कई प्रकार के
दिव्यानि – अद्भुत
नाना वर्ण आकृतीनि – उन रूपों को देखो जिनमें कई रंग और अवस्थाएँ हैं

सरल अनुवाद

भगवान् कृष्ण ने कहा   – हे कुन्ती पुत्र! मेरे रूपों को देखो (जो सर्वत्र उपस्थित हैं); और देखो,अद्भुत रूप जिनमें अनेक रंग और अवस्थाएँ हैं और जो सैकड़ों, हजारों और अनेक प्रकार के हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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