श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
सञ्जय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।।
पद पदार्थ
सञ्जय उवाच – संजय ने कहा
इति – इस प्रकार
अर्जुनं – अर्जुन के प्रति
वासुदेव: – कृष्ण
तथा उक्त्वा – जैसा कि पहले बताया गया है
स्वकं रूपं – अपना अमृततुल्य चतुर्भुज दिव्य रूप
भूयः दर्शयामास – पुनः प्रकट किया
भीतम् एनं – अर्जुन, (विश्वरूप को देखकर) भयभीत
महात्मा – कृष्ण जो सत्य संकल्प (जो अपनी सभी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं) हैं
पुनः सौम्य वपु: भूत्वा – फिर से सुंदर दिव्य रूप में दिखाई दिए
आश्वासयामास च – और उसको सांत्वना भी दी
सरल अनुवाद
संजय ने कहा – इस प्रकार, जैसा कि पहले बताया गया है, श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रति पुनः अपना अमृततुल्य चतुर्भुज दिव्य रूप प्रकट किया। कृष्ण जो सत्य संकल्प (जो अपनी सभी प्रतिज्ञाओं को पूरा करते हैं) हैं (विश्वरूप को देखकर) भयभीत अर्जुन को फिर से सुंदर दिव्य रूप में दिखाई दिए और उसको सांत्वना भी दी।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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