११.६ – पश्यादित्यान् वसून् रुद्रान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय ११

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श्लोक

पश्यादित्यान् वसून् रुद्रान् अश्विनौ मरुत: तथा |
बहून्यदृष्ट पूर्वाणि पश्याश्चर्याणि  भारत ||

पद पदार्थ

भारत – हे भरत वंश के वंशज!
आदित्यान् – (१२) आदित्यों (अदिति के पुत्रों)
वसून् – (८) वसुओं
रुद्रान् – (११) रुद्रों
अश्विनौ – (२) अश्विनि देवताओं
तथा मरुत:- (४९) मरुतों
पश्य – देखो (उन्हें मेरे एक रूप में)
बहूनि – सत्ताओं की विविधता (जो देखी जाती है)
अदृष्ट पूर्वाणि – पहले कभी नहीं देखा गया (कहीं भी किसी के द्वारा)
आश्चर्याणि – अद्भुत (दर्शन)
पश्य – देखो

सरल अनुवाद

हे भरत वंश के वंशज! (१२) आदित्यों (अदिति के पुत्रों), (८) वसुओं , (११) रुद्रों , (२) अश्विनि  देवताओं  और (४९) मरुतों को (मेरे एक रूप में)देखो; और विभिन्न प्रकार के सत्ताओं को , जिन्हें पहले कभी (किसी के द्वारा कहीं भी) नहीं देखा गया हो; (उस)अद्भुत (दृश्य को ) देखो ।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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