१२.१२ – श्रेयो हि ज्ञानं अभ्यासात्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १२

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श्लोक

श्रेयो हि ज्ञानम् अभ्यासात् ज्ञानात् ध्यानं विशिष्यते |
ध्यानात् कर्मफलत्याग: त्यागाचछान्तिरनन्तरम् ||

पद पदार्थ

अभ्यासात् – भगवान के प्रति (सच्चे प्रेम के बिना) भक्ति से श्रेष्ट
ज्ञानं – वह ज्ञान जो प्रत्यक्ष दर्शन की सुविधा देता है (जो ऐसी भक्ति अभ्यास का साधन है)
श्रेय: हि – क्या यह श्रेष्ट नहीं है?
ज्ञानात् – (अधूरे) आत्म-साक्षात्कार से श्रेष्ट
ध्यानं – स्वयं पर ध्यान (जो आत्म-प्राप्ति का साधन है)
विशिष्यते (हि) – क्या यह श्रेष्ट नहीं है?
ध्यानात् – (अधूरे) ध्यान से श्रेष्ट
कर्म फल त्याग: – फल को त्यागकर किया गया कर्म (जो ऐसे ध्यान का साधन है)
(विशिष्यते हि) – क्या यह श्रेष्ट नहीं है?
त्यागात् – कर्म योग में संलग्न होकर फल का त्याग से
अनन्तरम् – बाद में
शांति:- मन की शांति (मिलती है)

सरल अनुवाद

भगवान के प्रति, (सच्चे प्रेम के बिना) भक्ति से श्रेष्ट  वह ज्ञान है जो प्रत्यक्ष दर्शन की सुविधा देता है (जो ऐसी भक्ति अभ्यास का साधन है); (अधूरे) आत्म-साक्षात्कार से श्रेष्ट  स्वयं पर ध्यान करना है (जो आत्म-साक्षात्कार का साधन है); (अधूरे) ध्यान से श्रेष्ट  है फल त्याग कर किया गया कर्म (जो ऐसे ध्यान का साधन है); फल का त्याग कर कर्मयोग में संलग्न रहने से मन की शांति मिलती है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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