१३.२२ – उपद्रष्टाऽनुमन्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन् पुरुषः परः।।

पद पदार्थ

अस्मिन् देहे – इस शरीर में (वर्तमान) है
परः पुरुषः – यह आत्मा (जिसमें अनंत ज्ञान और शक्ति है)
उपद्रष्टा – (शरीर को देखकर) कार्य करने वाली
अनुमन्ता – (शरीर के कार्यों को) अनुमति देने/ध्यान करने वाली
भर्ता – समर्थन करने वाली
भोक्ता – (शरीर के कार्यों से होने वाले सुख/दुख का) आनंद लेने वाली
महेश्वरः – (अपने शरीर, इन्द्रिय, मन आदि के) महान् स्वामी
परमात्मा – महान् आत्मा (जो अपने शरीर, इन्द्रिय, मन आदि से महान् है)
इति चापि उक्त: – वह आत्मा इस प्रकार समझाया गया है

सरल अनुवाद

यह आत्मा (जिसमें अनंत ज्ञान और शक्ति है) जो इस शरीर में (वर्तमान) है, जो (शरीर को देखकर) कार्य करने वाली, (शरीर के कार्यों को) अनुमति देने/ध्यान करने वाली, उसका समर्थन करने वाली, (शरीर के कार्यों से होने वाले सुख/दुख का) आनंद लेने वाली, (अपने शरीर, इन्द्रिय, मन आदि के) महान् स्वामी और महान् आत्मा (जो अपने शरीर, इन्द्रिय, मन आदि से महान् है) के रूप में समझाया गया है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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