१३.२५ – अन्ये त्वेवम् अजानन्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

अन्ये त्वेवम् अजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।।

पद पदार्थ

एवम् अजानन्तः – जो आत्मा को देखने के लिए पहले बताए गए तरीकों को नहीं जानते हैं
अन्ये तु – कुछ अन्य लोग
अन्येभ्य: – ज्ञानियों (बुद्धिमानों) से
श्रुत्वा – कर्म योग आदि के बारे में निर्देशों सुनकर
उपासते – (उनके माध्यम से )आत्मा का ध्यान करते हैं
श्रुति परायणाः ते अपि च- जो लोग उन निर्देशों को सुनने में लगे हुए हैं वे भी
मृत्युं – संसार (भौतिक क्षेत्र)
अतितरन्ति एव – को पार कर जाएंगे

सरल अनुवाद

कुछ अन्य लोग जो आत्मा को देखने के लिए पहले बताए गए तरीकों को नहीं जानते हैं, वे ज्ञानियों (बुद्धिमानों) के निर्देशों के माध्यम से कर्म योग आदि के बारे में सुनकर आत्मा का ध्यान करते हैं। जो लोग उन निर्देशों को सुनने में लगे हुए हैं वे भी निश्चित रूप से संसार (भौतिक क्षेत्र) को पार कर जाएंगे।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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