१३.२६ – यावत् सञ्जायते किञ्चित्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

<< अध्याय १३ श्लोक २५

श्लोक

यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।।

पद पदार्थ

भरतर्षभ – हे भरतवंशी!
किञ्चित् स्थावर जङ्गमम् – स्थावर (जैसे कि पौधा) या जंगम (जैसे कि पशु) रूप में
यावत् सत्त्वं सञ्जायते – जितने भी प्राणी जन्म लेते हैं
तत् – वे सभी प्राणी
क्षेत्र क्षेत्रज्ञ संयोगात् – क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) नामक दो तत्त्वों के संयोग से उत्पन्न होते हैं
विद्धि – यह जान लो

सरल अनुवाद

हे भरतवंशी! यह जान लो कि जितने भी प्राणी स्थावर (जैसे कि पौधा) या जंगम (जैसे कि पशु) रूप में जन्म लेते हैं, वे सभी प्राणी क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) नामक दो तत्त्वों के संयोग से उत्पन्न होते हैं।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

>> अध्याय १३ श्लोक २७

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/13-26/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org