१३.२७ – समं सर्वेषु भूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।।

पद पदार्थ

सर्वेषु भूतेषु – समस्त प्राणियों (जैसे देव , मनुष्य , तिर्यक (जानवर), स्थावर (पौधे) को
समं – समान रूप
परमेश्वरं तिष्ठन्तं – (शरीर, मन और इन्द्रियों का) स्वामी
विनश्यत्सु – शरीर के नष्ट हो जाने पर
अविनश्यन्तं – आत्मा अविनाशी है
यः पश्यति – जो मनुष्य देखता है
स: पश्यति – वही यथार्थ रूप से जानता है

सरल अनुवाद

जो मनुष्य समस्त प्राणियों (जैसे देव, मनुष्य , तिर्यक (जानवर), स्थावर (पौधे)) के आत्मा को समान रूप से देखता है, और आत्मा को (शरीर, मन और इन्द्रियों का) स्वामी तथा शरीर के नष्ट हो जाने पर भी अविनाशी मानता है, वही आत्मा को यथार्थ रूप से जानता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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