श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्याद् आकाशं नोपलिप्यते।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथाऽऽत्मा नोपलिप्यते।।
पद पदार्थ
आकाशं – आकाश
सर्वगतं – सभी में व्याप्त होते हुए भी
सौक्ष्म्याद् – सूक्ष्म होने के कारण
यथा न उपलिप्यते – उनके गुणों से प्रभावित नहीं होता
तथा – उसी प्रकार
आत्मा – जीवात्मा
सर्वत्र देहे अवस्थित – विभिन्न शरीरों जैसे देव, मनुष्य, तिर्यक और स्थावर में उपस्थित होने पर भी
सौक्ष्म्याद् – सूक्ष्म होने के कारण
न उपलिप्यते – उन शरीरों के गुणों से प्रभावित नहीं होता
सरल अनुवाद
जिस प्रकार आकाश सभी में व्याप्त है, फिर भी सूक्ष्म होने के कारण वह जिन वस्तुओं में व्याप्त है, उनके गुणों से प्रभावित नहीं होता, उसी प्रकार जीवात्मा भी सूक्ष्म होने के कारण विभिन्न शरीरों जैसे देव, मनुष्य, तिर्यक और स्थावर में उपस्थित होने पर भी उन शरीरों के गुणों से प्रभावित नहीं होता।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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