१३.८ – इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १३

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श्लोक

इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार  एव च |
जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् ||

पद पदार्थ

इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम् – इंद्रियों के माध्यम से अनुभव किए जाने वाले शब्दं (ध्वनि) आदि इंद्रिय विषयों के प्रति वैराग्य
अनहङ्कार: एव च – शरीर को आत्मा न मानना
जन्म मृत्यु जरा व्याधि दु:ख दोष अनुदर्शनम् – जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, रोग, पीड़ा की निम्न प्रकृति पर ध्यान करना

सरल अनुवाद

… इंद्रियों के माध्यम से अनुभव  किए जाने वाले शब्दं (ध्वनि) आदि के प्रति वैराग्य, शरीर को आत्मा नहीं मानना, जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा, बीमारी, पीड़ा की निम्न प्रकृति पर ध्यान करना …

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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