१४.११ – सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन् प्रकाश उपजायते।
ज्ञानं यदा तदा विद्याद् विवृद्धं सत्त्वमित्युत।।

पद पदार्थ

अस्मिन् देहे – इस (भौतिक) शरीर में
सर्व द्वारेषु – नेत्र आदि इन्द्रियों जैसे द्वारों में. जिनके द्वारा ज्ञान संचारित होता है
प्रकाश ज्ञानं – ज्ञान जो वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने में सहायक होता है
यदा उपजायते – जब उत्पन्न होता है
तदा – उस समय
सत्त्वं विवृद्धं इति – सत्त्व (रजस् और तमस् से ) ऊपर उठता है
विद्याद् उत – (जीवात्मा) जान लेता है

सरल अनुवाद

इस (भौतिक) शरीर में जब वो ज्ञान उत्पन्न होता है, जो नेत्र आदि इन्द्रियों जैसे द्वारों में, जिनके द्वारा ज्ञान संचारित होता है, वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने में सहायक होता है, तब (जीवात्मा) जान लेता है कि उस समय सत्त्व (रजस् और तमस् से ) ऊपर उठता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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