श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।।
पद पदार्थ
अनघ – हे निर्दोष (अर्जुन)!
तत्र – सत्व, रजस और तमस नामक तीन गुणों में से
सत्त्वं – सत्व (अच्छाई)
निर्मलत्वात् – चूँकि स्वाभाविक रूप से (आत्मा का ज्ञान और आनंद) बिना छुपाए प्रकट होता है
प्रकाशकं – यह (आत्मा को) सच्चा ज्ञान देता है
अनामयम् – स्वस्थ जीवन प्रदान करता है
(वह)
सुख सङ्गेन – आनंद में आसक्ति उत्पन्न करके
ज्ञान सङ्गेन च – ज्ञान में आसक्ति उत्पन्न करके
बध्नाति – (शरीर में स्थित आत्मा को) और भी बांधता है
सरल अनुवाद
हे निर्दोष (अर्जुन)! सत्व, रजस और तमस नामक तीन गुणों में से, चूँकि सत्व (अच्छाई) स्वाभाविक रूप से (आत्मा का ज्ञान और आनंद) बिना छुपाए प्रकट होता है , यह (आत्मा को) सच्चा ज्ञान देता है और स्वस्थ जीवन प्रदान करता है। यह (शरीर में स्थित आत्मा को) आनंद और ज्ञान में आसक्ति उत्पन्न करके उसे और भी बांधता है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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