१४.७ – रजो रागात्मकं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १४

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श्लोक

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्।।

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र!
रज: – रजो गुण
रागात्मकं – (पुरुष और महिला के बीच) इच्छा का कारण
तृष्णा सङ्ग समुद्भवम् – शब्द (ध्वनि) आदि पर आधारित सांसारिक सुखों के प्रति इच्छा तथा पुत्रों/मित्रों में आसक्ति का कारण
विद्धि – जान लें
तत् – वह रजो गुण
देहिनम् – शरीर में स्थित आत्मा को
कर्म सङ्गेन – सांसारिक कार्यों में कामना उत्पन्न करके
बध्नाति – बाँधता है

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! जान लें कि रजो गुण (पुरुष और महिला के बीच) इच्छा का कारण है और शब्द (ध्वनि) आदि पर आधारित सांसारिक सुखों के प्रति इच्छा तथा पुत्रों/मित्रों में आसक्ति का कारण है; वह रजो गुण शरीर में स्थित आत्मा को सांसारिक कार्यों में कामना उत्पन्न करके बाँधता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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