श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अधश्चोर्ध्वं च प्रसृतास्तस्य शाखा गुणप्रवृद्धा विषयप्रवाला: |
पद पदार्थ
तस्य – उस वृक्ष की
शाखा:- (कुछ और) शाखाएँ
गुणप्रवृद्धा: – सत्व, रजस ,तमस जैसे गुणों से पोषित
विषयप्रवाला: – अंकुरित होना शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं से
अधश्च च उर्ध्वं च प्रसृता: – नीचे भी और ऊपर भी फैल रहें हैं
सरल अनुवाद
उस वृक्ष की (कुछ और) शाखाएँ सत्व, रजस और तमस जैसे गुणों से पोषित, शब्दं (ध्वनि ) जैसे इन्द्रिय वस्तुओं से अंकुरित, नीचे भी और ऊपर भी फैल रहें हैं ।
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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