श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् |
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ||
पद पदार्थ
आदित्य गतं – सूर्य में विद्यमान
यत् तेज: – उस तेज
अखिलं जगत् – समस्त लोकों को
भासयते – प्रकाशित करता है
चन्द्रमसि यत् – चंद्रमा के उस तेज (जो लोकों को प्रकाशित करता है)
यत् च अग्नौ – अग्नि के उस तेज (जो लोकों को प्रकाशित करता है)
तत् तेज: – उस तेज
मामकं – मेरा
विद्धि – जानो
सरल अनुवाद
सूर्य में विद्यमान उस तेज को जो समस्त लोकों को प्रकाशित करता है, चंद्रमा के उस तेज को (जो लोकों को प्रकाशित करता है) तथा अग्नि के उस तेज को (जो लोकों को प्रकाशित करता है) मेरा जानो।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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