१५.१८ – यस्मात् क्षरम् अतीतोऽहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: |
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: ||

पद पदार्थ

अहम् – मैं
यस्मात् – चूँकि
क्षरं – क्षर पुरुष (बंधे हुए जीव)
अतीत: – श्रेष्ठ
अक्षरात् अपि – अक्षर पुरुष (मुक्त जीव) से
उत्तम: च – महान होते हुए
अत: – इसलिए
वेदे लोके च – श्रुति और स्मृति में
पुरुषोत्तम: – पुरुषोत्तम के नाम से
प्रथित: अस्मि – प्रतिष्ठित रूप से जाना जाता हूँ

सरल अनुवाद

चूँकि मैं क्षर पुरुष (बंधे हुए जीव) से भी श्रेष्ठ हूँ और अक्षर पुरुष (मुक्त जीव) से भी महान हूँ, इसलिए श्रुति और स्मृति में मुझे प्रतिष्ठित रूप से पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाता हूँ।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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