१५.१९ – यो मामेवमसम्मूढो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १५

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श्लोक

यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् |
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ||

पद पदार्थ

भारत – हे भरतवंशी!
य: – जो व्यक्ति
एवं – इस प्रकार
पुरुषोत्तमम् – मैं बंधी हुई आत्माओं और मुक्त आत्माओं से भी अनेक कारणों से श्रेष्ठ हूँ
मां – मुझे
असम्मूढ: – बिना किसी भ्रम के
जानाति – जानता है
स: सर्ववित् – वह मुझ तक पहुँचने के सभी मार्गों को जानता है
मां – मेरी
सर्वभावेन भजति – उसने ही भक्ति आदि सभी मार्गों में मेरी सेवा की है।

सरल अनुवाद

हे भरतवंशी! जो व्यक्ति बिना किसी भ्रम के मुझे इस प्रकार जानता है कि मैं अनेक कारणों से बंधी हुई आत्माओं और मुक्त आत्माओं से भी श्रेष्ठ हूँ, वह मुझ तक पहुँचने के सभी मार्गों को जानता है। उसने ही भक्ति आदि सभी मार्गों में मेरी सेवा की है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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