१६.१ – अभयं सत्त्वसंशुद्धिः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

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श्लोक

श्री भगवानुवाच

अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।

पद पदार्थ

श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण ने कहा
अभयं – निर्भयता
सत्त्व संशुद्धिः – हृदय की पवित्रता
ज्ञान योग व्यवस्थितिः – आत्मा (जो पदार्थ से भिन्न है) पर ध्यान केन्द्रित करना
दानं – धर्मपूर्वक अर्जित धन को सज्जनों को दान में देना
दम: – मन को विषय-भोगों में लिप्त होने से रोकना
यज्ञ: च – पंच महायज्ञ आदि में संलग्न रहना (जैसे भगवान को तिरुवाराधन, बिना किसी अपेक्षा के)
स्वाध्याय: – वेदों का अध्ययन करना
तप: – तपस्या करना (जैसे एकादशी व्रत आदि)
आर्जवम् – मन, वाणी और कर्मों में सामंजस्य रखना

सरल अनुवाद

भगवान श्री कृष्ण ने कहा – निर्भयता, हृदय की पवित्रता, आत्मा (जो पदार्थ से भिन्न है) पर ध्यान केन्द्रित करना, धर्मपूर्वक अर्जित धन को सज्जनों को दान में देना, मन को विषय-भोगों में लिप्त होने से रोकना, पंच महायज्ञ आदि में संलग्न रहना (जैसे भगवान को तिरुवाराधन, बिना किसी अपेक्षा के), वेदों का अध्ययन करना, तपस्या करना (जैसे एकादशी व्रत आदि), तथा मन, वाणी और कर्मों में सामंजस्य रखना…..

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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