१६.२० – आसुरीं योनिम् आपन्ना

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

<< अध्याय १६ श्लोक १९

श्लोक

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि |
मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम् ||

पद पदार्थ

कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!
असुरीं योनिम् आपन्ना: – (जैसा कि पिछले श्लोक में बताया गया है)राक्षसी योनि प्राप्त कर चुके ये लोग,
जन्मनि जन्मनि – आने वाले जन्मों में
मूढा – मेरे बारे में मिथ्याबोध पालते हुए
माम् अप्राप्य – मेरे बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त किए बिना
तत:- उन [नीच] जन्मों से भी
अधमां गतिम् यान्ति – निम्न अवस्था प्राप्त करते हैं

सरल अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र! (जैसा कि पिछले श्लोक में बताया गया है), राक्षसी योनि प्राप्त कर चुके ये लोग, आने वाले जन्मों में मेरे बारे में मिथ्याबोध पालते हुए,  मेरे बारे में सच्चा ज्ञान प्राप्त किए बिना, उन [नीच] जन्मों से भी निम्न अवस्था प्राप्त करते हैं।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १६ श्लोक २१

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16-20/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org