१६.२३ – यः शास्त्रविधिम् उत्सृज्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १६

<< अध्याय १६ श्लोक २२

श्लोक

य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत : |
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां  गतिम् ||

पद पदार्थ

य:- जो
शास्त्र विधिम् – वेद जो मेरा आदेश है
उत्सृज्य – त्यागकर
काम कारत: वर्तते – अपनी इच्छा से कार्य करना
स:- वह
सिद्धिम् – परलोक में स्वर्ग आदि कोई भी लाभ
न अवाप्नोति – प्राप्त नहीं होता।
सुखं न (अवाप्नोति) – उसे इस जन्म में भी सुख प्राप्त नहीं होता है
परां गतिम् न (अवप्नोति) – वह अंतिम लक्ष्य (मुझे प्राप्त करने का) भी प्राप्त नहीं करता है

सरल अनुवाद

वेद , जो मेरी आदेश है,  को त्यागकर जो अपनी इच्छा से कार्य कर रहा है, उसे परलोक में स्वर्ग आदि कोई भी लाभ प्राप्त नहीं होता है। इस जन्म में भी उसे सुख  प्राप्त नहीं होता है । वह अंतिम लक्ष्य (मुझे प्राप्त करने का) भी प्राप्त नहीं करता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १६ श्लोक २४

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16-23/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org