श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
पद पदार्थ
दैवी सम्पत् – देवताओं का धन (अर्थात, मेरे आदेशों का पालन करना)
विमोक्षाय मता – संसार से मुक्ति की ओर ले जाता है
आसुरी (सम्पत्) – असुरों का धन (अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन करना)
निबन्धाय मता – नीच गति की प्राप्ति कराता है
सरल अनुवाद
देवताओं का धन (अर्थात, मेरे आदेशों का पालन करना) संसार से मुक्ति की ओर ले जाता है; असुरों का धन (अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन करना) नीच गति की प्राप्ति कराता है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16-4-5/
संगृहीत – http://githa.koyil.org
प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org