श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
अर्जुन उवाच
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विता: |
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: ||
पद पदार्थ
अर्जुन उवाच – अर्जुन बोला
कृष्ण – हे कृष्ण!
ये – वे
शास्त्र विधिम् उत्सृज्य – शास्त्र के नियमों की अवहेलना करके भी
श्रद्धया अन्विता: – श्रद्धापूर्वक
यजन्ते – यज्ञ करतें
तेषां तु – उनकी
निष्ठा – अवस्था
का – किसमें?
सत्त्वम् – क्या यह सत्त्वगुण (अच्छाई) में है?
अहो रज: – या यह रजो गुण (जोश) में है?
(अहो) तम: – या यह तमो गुण (अज्ञान) में है?
सरल अनुवाद
अर्जुन बोला – हे कृष्ण! जो लोग शास्त्र के नियमों की अवहेलना करके भी श्रद्धापूर्वक यज्ञ करतें हैं, उनकी अवस्था किस्में है? सत्त्वगुण (अच्छाई), रजोगुण (जोश) या तमोगुण (अज्ञान) में है ?
अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी
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