१७.३ – सत्वानुरूपा सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १७

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श्लोक

सत्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत |
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्ध: स एव स: ||

पद पदार्थ

भारत – हे भरत कुल के वंशज!
सर्वस्य – सबके लिए
सत्वानुरूपा – उनके इच्छा के अनुसार
श्रद्धा भवति – श्रद्धा होती है
अयं पुरुष:- यह व्यक्ति
श्रद्धामय: – ऐसी आस्था का परिवर्तन है;
य :- जो
यच्छ्रद्ध:- जिस श्रद्धा में है
स एव स:- वह उस श्रद्धा का ही परिणाम है

सरल अनुवाद

हे भरत कुल के वंशज! सबके लिए श्रद्धा उनके इच्छा के अनुसार होती है; यह व्यक्ति ऐसी आस्था का परिवर्तन है; जो जिस श्रद्धा में है, वह उस श्रद्धा का ही परिणाम है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

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