श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते।
त्यागी सत्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।।
पद पदार्थ
सत्व समाविष्ट: – जैसे कि पहले कहा गया है, सत्वगुण में स्थित
मेधावी – (उसी कारण) सत्य का सच्चा ज्ञान के साथ
छिन्नसंशयः – (उसी कारण) समस्त संशय से मुक्त
त्यागी – जो मनुष्य फल में आसक्त नहीं है, कर्मों के कर्तापन से जुड़ा नहीं है
अकुशलं कर्म – पाप कर्म जो प्रतिकूल फल देने वाला और अवांछनीय है
न द्वेष्टि – द्वेष नहीं करता है
कुशले (कर्माणि )- पुण्य कर्म जो अनुकूल फल देने वाला और वांछनीय है
न अनुषज्जते – इच्छा नहीं करता है
सरल अनुवाद
जो मनुष्य फल में आसक्त नहीं है, कर्मों के कर्तापन से जुड़ा नहीं है, जैसे कि पहले कहा गया है, वह सत्वगुण में स्थित है; (उसी कारण) सत्य का सच्चा ज्ञान रखता है, (उसी कारण) समस्त संशय से मुक्त है, वह न तो पाप कर्म से द्वेष करता है, जो प्रतिकूल फल देने वाला और अवांछनीय है, और न ही पुण्य कर्म की इच्छा करता है, जो अनुकूल फल देने वाला और वांछनीय है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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