१८.१९ – ज्ञानं कर्म च कर्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

ज्ञानं कर्म च कर्ता च त्रिधैव गुणभेदतः।
प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावच्छृणु तान्यपि।।

पद पदार्थ

गुण संख्याने – गुणों (जैसे सत्व, रजस् और तमस् ) के प्रभाव को गिनते समय
गुण भेदतः – गुणों की प्रकृति के अनुसार
ज्ञानं – ज्ञान (करने वाले कर्म के बारे में)
कर्म – क्रिया / अनुष्ठान (जो किया जाता है)
कर्ता च – कर्ता (जो कर्म करता है)
त्रिधा एव प्रोच्यते – सभी को तीन अलग-अलग तरीकों से समझाया जाता है
तानि अपि – उनका भी
यथावत् श्रुणु – वास्तविक स्वरूप सुनो

सरल अनुवाद

गुणों (जैसे सत्व, रजस् और तमस् ) के प्रभाव को गुणों की प्रकृति के अनुसार गिनते समय, तीन पहलुओं – ज्ञान (करने वाले कर्म के बारे में), क्रिया / अनुष्ठान (जो किया जाता है) और कर्ता (जो कर्म करता है), सभी को तीन अलग-अलग तरीकों से समझाया जाता है। उनका वास्तविक स्वरूप भी मुझसे सुनो।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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