१८.२ – काम्यानां कर्मणां न्यासम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक १

श्लोक

श्री भगवानुवाच

काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।

पद पदार्थ

श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण ने कहा
कवय: – (कुछ) विद्वान लोग
काम्यानां कर्मणां – निश्चित फल की आशा से किये गये काम्य कर्मों का
न्यासं – पूर्ण परित्याग
संन्यासं विदुः – संन्यास कहा गया है
विचक्षणाः – कुछ अन्य विद्वान
सर्व कर्म फल त्यागं – सभी कर्मों के फल का त्याग करना
त्यागं प्राहु: – त्याग कहा गया है

सरल अनुवाद

भगवान श्री कृष्ण ने कहा – (कुछ) विद्वान लोग कहते हैं कि निश्चित फल की आशा से किये गये काम्य कर्मों का पूर्ण परित्याग संन्यास कहा गया है। कुछ अन्य विद्वान कहते हैं कि सभी कर्मों के फल का त्याग करना त्याग कहा गया है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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