१८.२२ – यत् तु कृत्स्नवत् एकस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

यत्तु कृत्स्नवदेकस्मिन् कार्ये सक्तमहेतुकम्।
अतत्त्वार्थवदल्पं च तत्तामसमुदाहृतम्।।

पद पदार्थ

यत् तु – वह ज्ञान
एकस्मिन् कार्ये – किसी कार्य में (मृत लोगों और भूतों की पूजा करना जिससे सबसे कम परिणाम मिलते हैं)
कृत्स्नवत् – जैसे कि पूर्ण परिणाम देने वाले कार्यों में संलग्न होना
सक्तं – संलग्न होना
अहेतुकं – बिना किसी कारण (इस तरह से संलग्न होने में ) के
अतत्त्वार्थवत् – झूठी अवधारणा (आत्माओं को एक दूसरे से अलग देखना) में स्थित होना
अल्पं च – बहुत हीन होना
तत् – उस ज्ञान को
तामसम् उदाहृतम् – तामस ज्ञान (जो तमो गुण से प्राप्त होता है) कहा जाता है

सरल अनुवाद

वह ज्ञान जो मनुष्य को किसी कार्य में संलग्न करता है (मृत लोगों और भूतों की पूजा करना जिससे सबसे कम परिणाम मिलते हैं) जैसे कि बिना किसी कारण (इस तरह से संलग्न होने में ) के पूर्ण परिणाम देने वाले कार्यों में संलग्न होना , झूठी अवधारणा (आत्माओं को एक दूसरे से अलग देखना) में स्थित होना और बहुत हीन होना, उसे तामस ज्ञान (जो तमो गुण से प्राप्त होता है) कहा जाता है ।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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