श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी ||
पद पदार्थ
पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!
अव्यभिचारिण्या – बिना किसी अन्य फल की अपेक्षा के
योगेन – भगवद् उपासना (भगवान की पूजा) के माध्यम से
मनः प्राण इन्द्रिय क्रियाः – मन, प्राण और इन्द्रियों के कर्मों को
यया धृत्या धारयते – जिस धृति (स्थिरता) से धारण करता है
सा धृतिः – वह धृति
सात्त्विकी – सत्वगुण से उत्पन्न होती है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! जिस धृति (स्थिरता) से मनुष्य भगवद् उपासना (भगवान की पूजा) के माध्यम से, मन, प्राण और इन्द्रियों के कर्मों को, बिना किसी अन्य फल की अपेक्षा के, धारण करता है, वह धृति सत्वगुण से उत्पन्न होती है|
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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