श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्लोक
यया तु धर्मकामार्थान् धृत्या धारयतेऽर्जुन।
प्रसङ्गेन फलाकाङ्क्षी धृतिः सा पार्थ राजसी।।
पद पदार्थ
पार्थ अर्जुन – हे कुन्तीपुत्र अर्जुन!
फलाकाङ्क्षी – (मोक्ष के अलावा) परिणामों की इच्छा करता है
प्रसङ्गेन – बड़ी आसक्ति से
धर्म काम अर्थान् – तीन पुरुषार्थों अर्थात् धर्म, अर्थ और काम के साधनरूपी कर्मों
यया तु धृत्या – जिस धृति (स्थिरता) के साथ
धारयते – पालन
सा धृतिः – वह धृति
राजसी – रजो गुण से उत्पन्न होती है
सरल अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! जिस धृति (स्थिरता) के साथ मनुष्य बड़ी आसक्ति से (मोक्ष के अलावा) परिणामों की इच्छा करता है, तीन पुरुषार्थों अर्थात् धर्म, अर्थ और काम के साधनरूपी कर्मों का पालन करता है, वह धृति रजो गुण से उत्पन्न होती है।
अडियेन् जानकी रामानुज दासी
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