१८.३८ – विषयेन्द्रियसंयोगाद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

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श्लोक

विषयेन्द्रियसंयोगाद्यत्तदग्रेऽमृतोपमम्।
परिणामे विषमिव तत्सुखं राजसं स्मृतम्।।

पद पदार्थ

विषयेन्द्रिय संयोगात् – इंद्रियों के वस्तुओं (जैसे भोजन, पेय पदार्थ आदि) के संपर्क में आने से
अग्रे – आरंभिक अवस्था में (उन वस्तुओं के भोग की)
यत् तत् अमृतोपमम् – जो सुख अमृत के समान अनुभव देता है
परिणामे – अन्त में (भोग के परिणाम आने पर)
विषमिव – जो विष के समान दुःख देता है
तत् सुखं – वह सुख
राजसं स्मृतम् – रजो गुण से उत्पन्न कहा जाता है

सरल अनुवाद

इंद्रियों के वस्तुओं (जैसे भोजन, पेय पदार्थ आदि) के संपर्क में आने से जो सुख (भोग के) आरंभिक अवस्था में अमृत के समान अनुभव देता है और जो अन्त में (भोग के परिणाम आने पर) विष के समान दुःख देता है, वह सुख रजो गुण से उत्पन्न कहा जाता है।

अडियेन् जानकी रामानुज दासी

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