१८.४६ – यत: प्रवृत्तिर्भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

अध्याय १८

<< अध्याय १८ श्लोक ४५

श्लोक

यत: प्रवृत्तिर्भूतानां  येन सर्वम् इदं ततम् |
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य   सिद्धिं विन्दति मानव: ||

पद पदार्थ

यत: – जिस परमपुरुष से
भूतानां प्रवृत्ति: – हर वस्तु के सृजन आदि जैसे सभी क्रियाएँ उभरते हैं
येन – जिस सर्वोच्च प्रभु द्वारा
इदं सर्वम् – ये सभी सत्ताएँ
ततम् – व्याप्त है
तं – उस सर्वोच्च भगवान को
स्व कर्मणा – अपने वर्ण और आश्रम के अनुसार
अभ्यार्च्य – पूजा करके
मानव:-मनुष्य
सिद्धिं विन्दति – मुझे , जो सर्वोच्च लक्ष्य है, प्राप्त करता है

सरल अनुवाद

जो मनुष्य अपने वर्ण और आश्रम के अनुसार उस परमपुरुष की पूजा करता है, जिससे हर वस्तु के सृष्टि आदि सब क्रियाएँ उभरते हैं , जिससे ये सभी सत्ताएँ व्याप्त हैं, वह मुझे , जो सर्वोच्च लक्ष्य है, प्राप्त करता है।

अडियेन् कण्णम्माळ् रामानुज दासी

>> अध्याय १८ श्लोक ४६.५

आधार – http://githa.koyil.org/index.php/18-46/

संगृहीत – http://githa.koyil.org

प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org